इस जिंदगी की भागम् भाग मे कब दिन, हप्ते, महीने, वर्ष गुजर जाते है कुछ पता ही नही चलता। ऐसे मे जब अपनो की बात की जाए तो अपनो को सोच के ही मन मे एक मधुर आवेग व स्नेह उद्गमित हो उठता है।
कहने को तो हम मिले अवकाश मे घर जा रहे है पर अब तो घर भी चिड़िया की उस घोसले की तरह हो गया जो की क्षुधा सापेक्ष सृजन मे कही दूर तक आ चुकी हो, और अपने घर नित्त दिन रहने की कसक मन मे दबाये बैठे हो।
मिले अवसर मे अपनो के साथ अपना मन बाटें। वरिष्ठ जनो का आशीर्वाद और सिख ले। अपने नन्हे जानो का अभिवादन ले और उनको स्नेह दें। मिले कुछ पल को बेकार के झन्झवातो मे न गवा अपने परिवार, समाज और अपनो के संग तर्कवादी सोच के साथ प्रेम और स्नेह का एक नया आयाम दे और मिले अवसर का पूर्णरूपेण आनंद उठाये।
कहने को तो हम मिले अवकाश मे घर जा रहे है पर अब तो घर भी चिड़िया की उस घोसले की तरह हो गया जो की क्षुधा सापेक्ष सृजन मे कही दूर तक आ चुकी हो, और अपने घर नित्त दिन रहने की कसक मन मे दबाये बैठे हो।
मिले अवसर मे अपनो के साथ अपना मन बाटें। वरिष्ठ जनो का आशीर्वाद और सिख ले। अपने नन्हे जानो का अभिवादन ले और उनको स्नेह दें। मिले कुछ पल को बेकार के झन्झवातो मे न गवा अपने परिवार, समाज और अपनो के संग तर्कवादी सोच के साथ प्रेम और स्नेह का एक नया आयाम दे और मिले अवसर का पूर्णरूपेण आनंद उठाये।
No comments:
Post a Comment