Saturday, December 19, 2020

अंतिम प्रयास | motivational story

  एक समय की बात है. एक राज्य में एक प्रतापी राजा राज करता था. एक दिन उसके दरबार में एक विदेशी आगंतुक आया और उसने राजा को एक सुंदर पत्थर उपहार स्वरूप प्रदान किया.

राजा वह पत्थर देख बहुत प्रसन्न हुआ. उसने उस पत्थर से भगवान शिव की प्रतिमा का निर्माण कर उसे राज्य के मंदिर में स्थापित करने का निर्णय लिया और प्रतिमा निर्माण का कार्य राज्य के महामंत्री को सौंप दिया.



महामंत्री गाँव के सर्वश्रेष्ठ मूर्तिकार के पास गया और उसे वह पत्थर देते हुए बोला, “महाराज मंदिर में भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित करना चाहते हैं. सात दिवस के भीतर इस पत्थर से भगवान शिव की प्रतिमा तैयार कर राजमहल पहुँचा देना. इसके लिए तुम्हें 5000 स्वर्ण मुद्रायें दी जायेंगी.”

5000 स्वर्ण मुद्राओं की बात सुनकर मूर्तिकार ख़ुश हो गया और महामंत्री के जाने के उपरांत प्रतिमा का निर्माण कार्य प्रारंभ करने के उद्देश्य से अपने औज़ार निकाल लिए. अपने औज़ारों में से उसने एक हथौड़ा लिया और पत्थर तोड़ने के लिए उस पर हथौड़े से वार करने लगा. किंतु पत्थर जस का तस रहा. मूर्तिकार ने हथौड़े के कई वार पत्थर पर किये. किंतु पत्थर नहीं टूटा.

पचास बार प्रयास करने के उपरांत मूर्तिकार ने अंतिम बार प्रयास करने के उद्देश्य से हथौड़ा उठाया, किंतु यह सोचकर हथौड़े पर प्रहार करने के पूर्व ही उसने हाथ खींच लिया कि जब पचास बार वार करने से पत्थर नहीं टूटा, तो अब क्या टूटेगा.

वह पत्थर लेकर वापस महामंत्री के पास गया और उसे यह कह वापस कर आया कि इस पत्थर को तोड़ना नामुमकिन है. इसलिए इससे भगवान शिव की प्रतिमा नहीं बन सकती.

महामंत्री को राजा का आदेश हर स्थिति में पूर्ण करना था. इसलिए उसने भगवान की प्रतिमा निर्मित करने का कार्य गाँव के एक साधारण से मूर्तिकार को सौंप दिया. पत्थर लेकर मूर्तिकार ने महामंत्री के सामने ही उस पर हथौड़े से प्रहार किया और वह पत्थर एक बार में ही टूट गया.

पत्थर टूटने के बाद मूर्तिकार प्रतिमा बनाने में जुट गया. इधर महामंत्री सोचने लगा कि काश, पहले मूर्तिकार ने एक अंतिम प्रयास और किया होता, तो सफ़ल हो गया होता और 5000 स्वर्ण मुद्राओं का हक़दार बनता.

सीख – मित्रों, हम भी अपने जीवन में ऐसी परिस्थितियों से दो-चार होते रहते हैं. कई बार किसी कार्य को करने के पूर्व या किसी समस्या के सामने आने पर उसका निराकरण करने के पूर्व ही हमारा आत्मविश्वास डगमगा जाता है और हम प्रयास किये बिना ही हार मान लेते हैं. कई बार हम एक-दो प्रयास में असफलता मिलने पर आगे प्रयास करना छोड़ देते हैं. जबकि हो सकता है कि कुछ प्रयास और करने पर कार्य पूर्ण हो जाता या समस्या का समाधान हो जाता. यदि जीवन में सफलता प्राप्त करनी है, तो बार-बार असफ़ल होने पर भी तब तक प्रयास करना नहीं छोड़ना चाहिये, जब तक सफ़लता नहीं मिल जाती. क्या पता, जिस प्रयास को करने के पूर्व हम हाथ खींच ले, वही हमारा अंतिम प्रयास हो और उसमें हमें कामयाबी प्राप्त हो जाये।

Once upon a time. A majestic king ruled in a state. One day a foreign visitor came to his court and presented a beautiful stone gift to the king.


 The king was very happy to see that stone. He decided to build an idol of Lord Shiva from that stone and install it in the temple of the state and handed over the work of building the statue to the state's Chief Minister.

 The General Minister went to the best sculptor of the village and giving him the stone said, “Maharaj wants to install the idol of Lord Shiva in the temple. Within seven days, prepare the statue of Lord Shiva with this stone and send it to the palace. For this you will be given 5000 gold coins. "

   The sculptor was happy to hear about 5000 gold coins and after the departure of the General Secretary, took out his tools to start the construction of the statue. Out of his tools, he took a hammer and hit it with a hammer to break the stone. But the stone remains intact. The sculptor made several hammer blows on the stone. But the stone is not broken.

 After trying fifty times, the sculptor raised the hammer for the last attempt, but before he could hit the hammer, he pulled out the hand that when the stone was not broken by hitting it fifty times, what would be broken.

 He took the stone back to the General Secretary and returned it saying that it is impossible to break this stone. Therefore, an idol of Lord Shiva cannot be built with this.


 The king had to fulfill the king's order in every situation. Therefore, he entrusted the task of constructing the statue of God to a simple sculptor of the village. The sculptor carrying the stone hit him with a hammer in front of the General Secretary and the stone broke in one go.

 After the stone was broken, the sculptor started making the statue. Here the General Minister started thinking that if the first sculptor had done one more final effort, he would have succeeded and would have been entitled to 5000 gold coins.


 Learning - Friends, we also keep getting two or four from such situations in our life. Many times our confidence staggers before doing any task or before solving any problem, and we give up without trying. Many times we give up trying in case of failure in one or two attempts. While it may be that after some effort, the work gets completed or the problem is resolved. If you want to achieve success in life, then despite repeated failures, one should not stop trying until success is achieved. What to know, the effort that we pull before trying, it should be our last attempt and we will get success in it.

Sunday, December 13, 2020

जा मैं तुमको माफ़ किया.......

कौन वफा है किया मेरे संग, कौन मेरा इंसाफ किया,
दिल को तोड़ दिया मेरे तु, जा मैं तुमको माफ किया,

होठों से शिकायत क्या करना,
                  दिल का दस्तूर भी ले जाना,
कसमे वादे यादें सब,
                 चेहरे का नूर भी ले जाना,
ना जानोगे ना समझोगे तुम,
                 मैंने कैसे दिन को  रात किया,
कौन वफ़ा है किया मेरे संग...........
दिल को तोड़ दिया मेरे तू.............

कभी चांद सा उग के  हम,
               खुद पे ही इतराते थे,
तुम को आते देख गली में,
               छत पर हम आ जाते थे,
सूख गई सब दिल की कलियां,
               अरमां जलकर खाक हुआ,
कौन वफा है क्या मेरे संग.........
दिल को तोड़ दिया मेरे तू..........

छल्ले, टेडी, गुलदस्ते,
             ये कान की बाली ले जाना,
कभी सुर्ख अब सूख गए,
             अधरों की लाली ले जाना,
तेरे उस खत का का अब क्या होगा,
             जिसे सजदे में अरदास किया,
कौन वफ़ा है किया मेरे संग, कौन मेरा इंसाफ किया,

दिल को तोड़ दिया मेरे तू, जा मैं तुमको माफ किया।





Friday, December 11, 2020

तुमसा कोई एक.......

किसी शायर का हसीन ख्वाब हो तुम,
शमां या जश्न ए चिराग हो तुम,
जो चमकता रहे हर धड़कन में,
उस धड़कन की महताब हो तुम। 


सरसों के खेतों का रंग हो तुम,
तिलमिलाती तितलियों का उमंग हो तुम,
झरने की झर झर की मधुर राग हो तुम,
मचलती लहरों का अनोखा अंदाज हो तुम। 

मदमाती हवाओं की अंगड़ाई हो तुम,
सतरंगी दुपट्टे की परछाई हो तुम। 


किसी दुल्हन की चाह की लहक हो तुम,
किसी बगिया की भोर की महक हो तुम,
सदियों की तड़प की प्यास हो तुम,
किसी ताजी शहद की मिठास हो तुम। 


इतनी सभी रंगीनियत  को जब खुदा ने मिलाया होगा,
तब जाकर कहीं तुमसा कोई एक बनाया होगा।




Saturday, December 5, 2020

ये क्या हो गया.....

पिरो पाता तुमको अल्फाजों में अगर, 

 तो कहता नया एक आगाज हो गया,
चलना ना सीखा जो ढंग से जमीन पर,
देखा जो तुझको परवाज हो गया।


झलक तेरी देखा तो दिल के चेंबर में,
एक्शन रिएक्शन का फोर्स हो गया,
तेरे लबों की हंसी की चिंगारी मिली तो,
मैं राख से एनर्जी आफ सोर्स हो गया।


दरबदर भटका धुआरे के कण सा,
लगता था जैसे हुमायुं हो गया,
प्रिज्म सी तेरी सतरंगी चमक पाकर,
भभक कर मैं पूरा किलायु हो गया।


मैं-मैं ना रहा प्लूटो सा रास्ता भटक सा गया,

चंद्रयान-टू की विक्रम की तरह,

खुलने से पहले अटक सा गया,
दुनिया की एक्वारेजिया मे ऐसा  घुला मै,
घुलकर सोना सा तलबगार हो गया,
तुम गुजरी करीब से रेखा विषुवत की तरह,
मैं वनो की तरह फिर से सदाबहार हो गया।


लोग गिनते रहे मेरे जख्मों को,
जीडीपी जीएनपी की तरह,
मेरे दिल में दर्द की कई समितियां बनी,
मै उलझा रहा खुद में ट्रिपल पी की तरह,
दिल में जीरो से अनंत तक समेशन हो गया,
देख तेरे तिल के नये समीकरण,
मेरे दिल में नया एक अधिवेशन हो गया।


मैं चाहूं मेरे प्यार में अमेजन सा पानी हो,
और मेरी चाहत की नील सी लंबी कहानी हो,
ना मिला ऐसा कोई मैं उदास हो गया,
मिली तुम नई मोहनजोदड़ो की सभ्यता सी,
फिर से वही मै राखलदास हो गया।


अब बस मैं यही कहूंगा क्या हो गया,
सोचा नहीं ऐसा ये क्या हो गया,
कमल से खेलने वाला एक नौसिखिया,
तेरे ख्वाब देखता फिर से बिना खाए ही सो गया।




यार बताऊं कैसे मैं

  चाह बहुत है कह जाऊं,  पर यार बताऊं कैसे मैं  सोचता हूं चुप रह जाऊं,  पर यार छुपाऊं कैसे मैं ।  प्रेम पंखुड़ी बाग बन गया,  धरा पर लाऊं कैसे...