Thursday, March 25, 2021

क्या लिखूँ

क्या कुछ ऐसा खास लिखूँ,
            बस एक सहज एहसास लिखूँ,
जेठ की दुपहरी में, एक शीतल छांव लिखूँ,
            या नन्हे बालक का, डगमगाता पांव लिखूँ,

सभी रिश्तो की बुनावट की, सुनहली डोर हो तुम,
गम के सघन अंधेरे में, उम्मीद की भोर हो तुम
दुख के सन्नाटे में भी, एक मध्यम शोर हो तुम,
इस कुटुंब की बगिया में, नाचता मोर हो तुम,

बिना जिसके घर-घर ना लगे,
               क्या जंगल कुश या कटास लिखूँ,
क्या कुछ ऐसा खास लिखूँ,
               बस एक सहज एहसास लिखूँ...........

यार बताऊं कैसे मैं

  चाह बहुत है कह जाऊं,  पर यार बताऊं कैसे मैं  सोचता हूं चुप रह जाऊं,  पर यार छुपाऊं कैसे मैं ।  प्रेम पंखुड़ी बाग बन गया,  धरा पर लाऊं कैसे...