Thursday, December 23, 2021

क्या आप समझ पा रहें हैं?


 'जो लोग आपको समंदर के बढ़ते जलस्तर को लेकर चेतावनी दे रहे हैं, वे खुद समंदर किनारे की जायदाद खरीदने में लगे हैं! 


जो लोग आपको महामारी को लेकर चेतावनी दे रहे हैं, वे खुद पार्टियां और रैलियां करने में मशगूल हैं! 


जो लोग आपको यह बता रहे हैं कि आप अपने विवेक या कॉमन सेंस के हथियार का समर्पण कर दीजिए तो इससे आप सुरक्षित रहेंगे, वे खुद अपने लिए सबसे आधुनिक हथियारों का सुरक्षा घेरा खड़ा करने में लगे हैं!


क्या आप अब भी यह समझ पा रहे हैं?'


Tuesday, September 14, 2021

हिंदी दिवस

     हिंदी एक भाषा मात्र ही नही, अपितु एक सांस्कृतिक चेतना, व हृदय भाव को सहज लहजे में स्पष्ट व सरस ढंग से सम्प्रेषित करने की भाषा है, 

         हिंदी भाषा को भारतीय संविधान के द्वारा 14 सितंबर 1949 को राजभाषा का दर्जा दिया गया। हिंदी भाषा के महत्व को बताने और इसके प्रचार प्रसार के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के अनुरोध पर 1953 से प्रति वर्ष हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
     हिंदी खड़ी बोली के जनक व आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह भारतेंदु हरिश्चंद्र जी प्रसिद्ध कविता की पंक्ति कुछ इस प्रकार है-
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल,
बिनु निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।

भावार्थ:
निज यानी अपनी भाषा से ही उन्नति संभव है, क्योंकि यही सारी उन्नतियों का मूलाधार है।
         मातृभाषा के ज्ञान के बिना हृदय की पीड़ा का निवारण संभव नहीं है। विभिन्न प्रकार की कलाएँ, असीमित शिक्षा तथा अनेक प्रकार का ज्ञान, सभी देशों से जरूर लेने चाहिये, परन्तु उनका प्रचार मातृभाषा के द्वारा ही करना चाहिये।
         हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं! 



Wednesday, July 14, 2021

सुंदरता का घमण्ड

      एक बार की बात है, दूर एक रेगिस्तान में, एक गुलाब था जिसे अपने सुंदर रूप पर बहुत गर्व था।  उसकी एकमात्र शिकायत एक बदसूरत कैक्टस के बगल में बढ़ रही थी।

     








हर दिन, सुंदर गुलाब कैक्टस का अपमान करता था और उसके लुक्स पर उसका मजाक उड़ाता था, जबकि कैक्टस चुप रहता था।  आस-पास के अन्य सभी पौधों ने गुलाब को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह भी अपने ही रूप से प्रभावित था।

        एक चिलचिलाती गर्मी, रेगिस्तान सूख गया, और पौधों के लिए पानी नहीं बचा।  गुलाब जल्दी मुरझाने लगा।  उसकी खूबसूरत पंखुड़ियां सूख गईं, अपना रसीला रंग खो दिया।
कैक्टस की ओर देखते हुए, उसने देखा कि एक गौरैया पानी पीने के लिए अपनी चोंच को कैक्टस में डुबा रही है।  हालांकि शर्म आ रही थी, गुलाब ने कैक्टस से पूछा कि क्या उसे कुछ पानी मिल सकता है।  दयालु कैक्टस आसानी से सहमत हो गया, और एक दोस्त की तरह उसकी मदद की और उसको जीवित रखा।

सीख -
कभी भी किसी को उनके दिखने के तरीके से मत आंकिए।

Tuesday, July 13, 2021

खुद को बदलें, दुनिया को नहीं


एक बार की बात है, एक राजा था जो एक समृद्ध देश पर शासन करता था।  एक दिन, वह अपने देश के कुछ दूर के इलाकों में यात्रा के लिए गया। 

       जब वह अपने महल में वापस आया, तो उसने शिकायत की कि उसके पैर बहुत दर्दनाक रूप से छिल गए थे।क्योंकि यह पहली बार था कि वह इतनी लंबी यात्रा के लिए गया था, और जिस सड़क पर वह गया था बहुत उबड़-खाबड़ और पथरीला रास्ता था, फिर उसने अपने लोगों को आदेश दिया कि वे शहर की हर सड़क को चमड़े के साथ पूरा ढक दें।

        निश्चित रूप से, इसके लिए हजारों जानवर की खाल की आवश्यकता होगी, और इसकी कीमत एक  बड़ी मात्रा में धन की होगी। 

 तब उसके एक बुद्धिमान सेवक ने राजा से यह कहने का साहस किया, “क्यों?

 आपको वह अनावश्यक राशि खर्च करनी होगी?  आप क्यों नहीं,अपने पैरों को ढकने के लिए चमड़े का एक छोटा सा टुकड़ा काट लें?"

 राजा को आश्चर्य हुआ, लेकिन बाद में वह उनके सुझाव पर सहमत हो गया

 खुद के लिए एक "जूता"।

 इस कहानी में वास्तव में जीवन का एक मूल्यवान सबक है: इस दुनिया को सुखी बनाने के लिए रहने के लिए हर जगह को न बदलें, बेहतर होगा कि आप खुद को बदल लें - आपका दिल;  और दुनिया नहीं।

Wednesday, May 26, 2021

मोहब्बत












सालों साल ऐसे ही चलती रही मोहब्बत, 

रूह- ए- बिरह मे जलती रही मोहब्बत, 

     कभी तेरी चाह के लिए तो, 

             कभी तेरी पनाह के लिए, 

कभी आह से खलती रही मोहब्बत

सालों साल ऐसे ही चलती रही मोहब्बत, 

रूह- ए- बिरह मे जलती रही मोहब्बत, 

     मोहब्बत थी मोहब्बत है

              ये जाने कबकी उल्फ़त है, 

फिर मेरी भी क्यो नहीं बनती कोई मोहब्बत, 

सालों साल ऐसे ही चलती रही मोहब्बत, 

रूह- ए- बिरह मे जलती रही मोहब्बत।। 


Wednesday, May 5, 2021

कोरोना


 





कोरोना तुमने गज़ब का सीज़न बना दिया,
आदमी को आदमी से अलग करने का रीजन बना दिया,


हाथ धोते रहे लोग नौकरी से लगातार,
पढ़े लिखे लोग होते रहे बेरोजगार,
कौन कहता है साबुन से हाथ धोना है बार-बार
अब तो जान से हाथ धोने का मौसम बना दिया,
कोरोना तुमने गज़ब का सीज़न.........


लोगो मे इंसानियत हुआ करती थी कभी,
दुःख मे लोगो की भीड़ दुआ करती थी कभी,
जहाँ पैसे की हवा हुआ करती थी कभी,
अब तो  हवा का ही तुमने पैसा बना दिया,
कोरोना तुमने गज़ब का सीज़न बना.......

Bewafa || बेवफ़ा


 







ये जो तू अदब से थाम रखा हैं काँधे को,
कभी मेरे हाथों की चाह रखते थे,
हमें यकीं कहा था वो बाहें बेवफा होगी,
जो मेरे गले से मोहब्बत बेपनाह रखते थे,


सुन भाई!
ये है तो बेवफा पर इसका ख्याल रखना,
इसको आदत है हाथ मे हाथ रखने की,
इसके नाजुक हाथों को जरा संभाल रखना।

आँखों में देख के मुस्कराने की,
इसकी अदा ही है दिल लगाने की,
अपने आप को अभी तक सिंगल बताने की,
थोड़ी सी छुवन से लिपट के गले लग जाने की,
ये तुम्हारी बनके रहेगी सदा के लिए,
ये गलत फहमी मन से निकाल रखना,
सुन भाई!
ये है तो बेवफ़ा पर........


बात बात पे इमोशनली रोना आता है इसको,
इसी नरमी से गुमराह किया ना जाने किस किसको,
दिखावे ऐसे है बोलेगी थोड़ा और मेरे करीब खिसको,
मेरे बारे पूछ लेना, बोलेगी
                           हे राम! ऐसा कब और किसको,

खुदा करे!
लोगों के बदलने का सिलसिला इसका थम  ही जाये,
इस दुनिया से ये बला टल ही जाये,
अब तुम ही इसके लिए वफ़ा की मशाल रखना,
सुन भाई!
ये है तो बेवफ़ा पर इसका ख्याल रखना.......

 

Thursday, March 25, 2021

क्या लिखूँ

क्या कुछ ऐसा खास लिखूँ,
            बस एक सहज एहसास लिखूँ,
जेठ की दुपहरी में, एक शीतल छांव लिखूँ,
            या नन्हे बालक का, डगमगाता पांव लिखूँ,

सभी रिश्तो की बुनावट की, सुनहली डोर हो तुम,
गम के सघन अंधेरे में, उम्मीद की भोर हो तुम
दुख के सन्नाटे में भी, एक मध्यम शोर हो तुम,
इस कुटुंब की बगिया में, नाचता मोर हो तुम,

बिना जिसके घर-घर ना लगे,
               क्या जंगल कुश या कटास लिखूँ,
क्या कुछ ऐसा खास लिखूँ,
               बस एक सहज एहसास लिखूँ...........

यार बताऊं कैसे मैं

  चाह बहुत है कह जाऊं,  पर यार बताऊं कैसे मैं  सोचता हूं चुप रह जाऊं,  पर यार छुपाऊं कैसे मैं ।  प्रेम पंखुड़ी बाग बन गया,  धरा पर लाऊं कैसे...