सालों साल ऐसे ही चलती रही मोहब्बत,
रूह- ए- बिरह मे जलती रही मोहब्बत,
कभी तेरी चाह के लिए तो,
कभी तेरी पनाह के लिए,
कभी आह से खलती रही मोहब्बत
सालों साल ऐसे ही चलती रही मोहब्बत,
रूह- ए- बिरह मे जलती रही मोहब्बत,
मोहब्बत थी मोहब्बत है
ये जाने कबकी उल्फ़त है,
फिर मेरी भी क्यो नहीं बनती कोई मोहब्बत,
सालों साल ऐसे ही चलती रही मोहब्बत,
रूह- ए- बिरह मे जलती रही मोहब्बत।।
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