Saturday, August 17, 2019

मानव जीवन उद्देश्य..........

           हमारी संस्कृति और इतिहास इस बात को प्रमाणित करते हैं कि सफल और महान उन्ही व्यक्तियों को कहा गया है जिन्होंने अपने संचित ज्ञान का सदुपयोग किया और अधिक से अधिक प्रसार भी किया। अर्थात ज्ञान प्राप्त करना उतना महत्वपूर्ण नहीं जितना महत्वपूर्ण उसका सदुपयोग और अधिक से अधिक हस्तान्तरण। चाहे वह विज्ञान का क्षेत्र हो, खेल-कूद, साहित्य, कला, चिकित्सा शास्त्र, धर्मशास्त्र हो, हर क्षेत्र में महान और सफल हुए महापुरुषों की एक लंबी सूची है और इस सूची में उनका ही नाम है जिन्होंने अपने संचित ज्ञान का अधिक से अधिक सदुपयोग किया और आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाया।
           अतः आज की युवा पीढ़ी पर इस बात की जिम्मेदारी है कि वह लीक से हटकर सोचे और अपने जीवन से कुछ सकारात्मक परिणाम निकाले। जीवन में सफलता प्राप्ति के लिए मार्ग तो अनेक हैं लेकिन उनपर चलने की प्रेरणा हम अपने उन पूर्वजोँ से लें जिन्होंने अपने संचित ज्ञान का अधिकाधिक सदुपयोग किया और अपनी विचारधारा, विश्लेषण एवं अन्वेषणों के माध्यम से हमारा मार्ग भी प्रसस्त किया। 
        ज्ञान को न सिर्फ प्राप्त किया जाए बल्कि इसका उपयोग कुछ इस तरीके से किया जाए जिससे इसका लाभ अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचे। ऐसा कर
के आप सफलता के नए आयाम स्थापित करें तो आश्चर्य नहीं। आज सूचना प्रौद्योगिकी ने ज्ञान का प्रसार और भी आसान कर दिया है। पुराने समय में हमारे महर्षियों, धर्मशास्त्रियों, वैज्ञानिकों और साहित्यकारों आदि ने संसाधन कम होने पर भी अपने कृतियों के माध्यम से अपने को अमर कर गए। फिर आज तो आपके पास प्रिंट मिडिया और इंटरनेट जैसे संसाधनों के अनेक ऐसे अमोघ अस्त्र हैं जिनका वार खाली नहीं जा सकता बशर्ते उसे सही दिशा में चलाया जाए।

यार बताऊं कैसे मैं

  चाह बहुत है कह जाऊं,  पर यार बताऊं कैसे मैं  सोचता हूं चुप रह जाऊं,  पर यार छुपाऊं कैसे मैं ।  प्रेम पंखुड़ी बाग बन गया,  धरा पर लाऊं कैसे...