Saturday, December 5, 2020

ये क्या हो गया.....

पिरो पाता तुमको अल्फाजों में अगर, 

 तो कहता नया एक आगाज हो गया,
चलना ना सीखा जो ढंग से जमीन पर,
देखा जो तुझको परवाज हो गया।


झलक तेरी देखा तो दिल के चेंबर में,
एक्शन रिएक्शन का फोर्स हो गया,
तेरे लबों की हंसी की चिंगारी मिली तो,
मैं राख से एनर्जी आफ सोर्स हो गया।


दरबदर भटका धुआरे के कण सा,
लगता था जैसे हुमायुं हो गया,
प्रिज्म सी तेरी सतरंगी चमक पाकर,
भभक कर मैं पूरा किलायु हो गया।


मैं-मैं ना रहा प्लूटो सा रास्ता भटक सा गया,

चंद्रयान-टू की विक्रम की तरह,

खुलने से पहले अटक सा गया,
दुनिया की एक्वारेजिया मे ऐसा  घुला मै,
घुलकर सोना सा तलबगार हो गया,
तुम गुजरी करीब से रेखा विषुवत की तरह,
मैं वनो की तरह फिर से सदाबहार हो गया।


लोग गिनते रहे मेरे जख्मों को,
जीडीपी जीएनपी की तरह,
मेरे दिल में दर्द की कई समितियां बनी,
मै उलझा रहा खुद में ट्रिपल पी की तरह,
दिल में जीरो से अनंत तक समेशन हो गया,
देख तेरे तिल के नये समीकरण,
मेरे दिल में नया एक अधिवेशन हो गया।


मैं चाहूं मेरे प्यार में अमेजन सा पानी हो,
और मेरी चाहत की नील सी लंबी कहानी हो,
ना मिला ऐसा कोई मैं उदास हो गया,
मिली तुम नई मोहनजोदड़ो की सभ्यता सी,
फिर से वही मै राखलदास हो गया।


अब बस मैं यही कहूंगा क्या हो गया,
सोचा नहीं ऐसा ये क्या हो गया,
कमल से खेलने वाला एक नौसिखिया,
तेरे ख्वाब देखता फिर से बिना खाए ही सो गया।




2 comments:

  1. Bahut shaandaar, sbhi vishyon ka bahut hi accha smaavesh hai.

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    1. कोटिश धन्यवाद! आदरणीय आभार!

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